संत कबीर वाणी

पढी गुनी पाठक भये, समुझाया संसार
आपन तो समुझै नहीं, वृथा गया अवतार


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि बहुत पढ़-लिखकर दूसरों को पढाने और उपदेश देने लगे पर अपने को नहीं समझा पाए तो कोई अर्थ नहीं है क्योंकि अपना खुद का जीवन तो व्यर्थ ही जा रहा है।

भावार्थ- आज के संदर्भ में भी उनके द्वारा यह सत्य हमें साफ दिखाई देता है, अपने देखा होगा कि दूसरों को त्याग और परोपकार का उपदेश देने वाले पाखंडी साधू अपने और अपने परिवार के लिए धन और संपत्ति का संग्रह करते हैं और अपनी गद्दी भी अपने किसी शिष्य को नहीं बल्कि अपने खून के रिश्ते में ही किसी को सौंपते हैं। ऐसे लोगों की शरण लेकर भी किसी का उद्धार नहीं हो सकता।


पढ़त गुनत रोगी भया, बडा बहुत अभिमान
भीतर ताप जू जगत का, बड़ी न पड़ती सां

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कुछ लोग किताबें पढ़, सुन और गुनकर रोगी हो गये और उन्हें अभिमान हो जाता है। जगत को विषय-कामनाओं का ताप भीतर ताप रहा है, घड़ी भर के लिए शांति नहीं मिलती है।


भावार्थ-आपने देखा होगा कि कुछ लोग धार्मिक पुस्तकें पढ़कर दूसरों को समझाने लगते हैं। दरअसल उनको इस बात का अहंकार होता है कि हमें ज्ञान हो गया है जबकि वह केवल शाब्दिक अर्थ जानते हैं पर उसके भावार्थ को स्वयं अपने मन में उन्होने धारण नहीं किया होता है।

Chand ke intezar main taare

Kise ne wadaa kiya hai aane ka
Hussan dekho Garib Khaane ka

Rooh ko aaina dikhate hain
Dar-o-divar muskurate hain

Aaj ghar, ghar bana hai pahli bar
Dil mein hai Khush saliqagi bedar

Jaman saman hai aish-o-ishrat ka
Khauf dil mein fareb-e-qismet ka

Soz-e-qalb-e-kalim aankhon mein
Ashk-e-ummiid-o-biim aankhon mein

Chashm-bar-raah-e-shauq ke mare
Chand ke intezar mein taare

Driver mar gaya kya?

Ek baar ek Totaa (Bole to Parrot ) Ud Raha tha full speed par ....

Uske Saamne full speed me ek Ferrari AA rahi thi ...

Dono ki takkar hui ...

Totaa Behosh ...

Raste me Ek Beggar tha

Usne Tote ko uthaya aur Ghar Le gaya ...

Usko Marham lagaya ..

Aur Pinjare me rakh diya ...

Jab Tote ko hosh aaya ...


Usne apne aap ko Pinjare me dekha ...
.
.
.
.
.
.
.
.
.

..

....


Bola ...
.
.
.
.
.
.


"AAILA ... JAIL .... Who Ferrari ka Driver mar gaya kya ??

Whatever your cross

Whatever your cross,
whatever your pain,
there will always be sunshine,
after the rain ....
Perhaps you may stumble,
perhaps even fall,
But God's always ready,
To answer your call ...
He knows every heartache,
sees every tear,
A word from His lips,
can calm every fear ...
Your sorrows may linger,
throughout the night,
But suddenly vanish,
in dawn's early light ...
The Savior is waiting,
somewhere above,
To give you His grace,
and send you His love...
Whatever your cross,
whatever your pain,
"God always sends rainbows ....
after the rain ... "




To get out of difficulty, one must usually go through it !

माफ़ कर देना

तुमसे कहीं आज लिपट जाएँ तो माफ़ कर देना,
हद से गर आगे बढ़ जाएँ तो माफ़ कर देना.

शोखियाँ आंखों कि बेताब कर रही हैं हम को
आज इन मी कहीं डूब जाएँ तो माफ़ कर देना.

भीगे होठों के पैमाने न दिखाओ हम को,
इन्हें पीने को लैब लिपट जाएँ तो माफ़ कर देना.

दिल कि बातें लैब तक ला कर रोक लेते हैं हम
ख़त हमारे किताबों में कभी पो तो माफ़ कर देना.

हर सांस हमारी तुम्हारे हुस्न कि कर्ज़दार हो चुकी,
दिल-ए-नादान इजहार -ए -मोहब्बत कर जाये तो माफ़ कर देना.

उल्फत के अफसाने गूंजते हैं कायनात तक,
इश्क हमारा तुम्हे बदनाम कर जाये तो माफ़ कर देना.

जान, हद से आगे बढ़ जाएँ तो माफ़ कर देना,
तुमसे कहीं आज लिपट जाएँ तो माफ़ कर देना.

हिन्दी का स्वरूप

एक दिन मिल गयी वो मुझे
गली के एक मोड़ पर
बिखरे उलझे केश, चेहरे पर झुर्रिया.
झुकी कमर और हाथ में लाठी !!!
पूंछ ही लिया मैंने……….. कोन हो तुम
हिचकती, हक्लाती वो बोली
बेटा नही पहचानता मुझे……..
में हिन्दी हू तुम्हारी माँ,
मैंने सबको अपने में समाया,
पर… तुम्ही ने नही अपनाया मुझे
में जहा कल थी , आज वो है………….
शर्म से झुक गयी मेरी आँखे,
पता नही कहा चली गयी मेरी आवाज,
और जब नज़रे उठी तो सामने कोई नही था,
था तो केवल शून्य, केवल शून्य…………॥!!!!!

जब कभी मिलते है उनसे

जब कभी मिलते है उनसे, तो लगता है
हम अपनी कही कोई हुई ख़ुशी से मिलते है

सर को रख लेते है उनके दर पर " ख्वाइश "
हम उनसे इतनी दीवानगी से मिलते है

जब कभी जुदा होते है हम उनसे
कोई होश न ही कोई सुकून मिलता है
समझलो जैसे हम अपनी आवारगी से मिलते है

हमें नही कोई शौक महफिलो में रहने का
हम तो उनके साथ मिले पल, भीड़ से दूर,
जहाँ सिर्फ वह और हम रहे,
यूह समझलो बड़ी सादगी से मिलते है

वह जब साथ होते है अपने,
रौनके ढूँढ़ते है चेहरों पर,
जिस किसी आदमी से मिलते है

इश्क कि खुमारी, इश्क करने वाले समझे
हमें तो यही लगता है, रात कि तन्हाई में
आसमान के तारे भी अपने ज़मीन से मिलते है

गुमसुम सा हो जाता हूँ तनहा मैं
जो वह मिलते है तो लगता है
हम अपनी खोई हुई हस्ती से मिलते है

जब भी मिलते है उनसे तो अपनी,
हर सांस ,हर लफ्ज़, हर ख्वाइश,
हर कदम, हर धड़कन, हर आरजू, हर दुआ
लगता है हमें, कुबूल हो गयी हो जैसे,
उन्हें मिलके होता है यह एहसास जैसे
हम अपनी ज़िंदगी से मिलते है

ये जरुरी तो नही

मेरे हर लब्ज़ शब्दों में बयाँ हो, ये जरुरी तो नही,
दिल के जज्बात आंखो में समां हो, ये जरुरी तो नही,
mumkin है हर दर्द को दिल में छुपाना भी ……..............
हर रिश्ते अश्क से भीगे पलके, ये जरुरी तो नही………………

जिसकी मोहब्बत में, मैं कुछ भी कर गुजर चुकॉ,
उसे भी मुझ पर हो इतना यकीं, ये जरुरी तो नही………………


जिसकी यादो में, मैं रात भर सोया नही शायद ,
उसके ख्वाबो में भी हो मेरा इन्तजार, ये जरुरी तो नही…………।


हर वक़्त खाई थी जिसने साथ मरने कि कसमें,
वो दे जिंदगी में भी साथ , ये जरुरी तो नही......................

मुझे भूल जाने की बात

मुझे भूल जाने की बात कभी मत करना,
मुझ से रूठ जाने कि बात कभी मत करना
तू रहे बेशक मेरी नज़रो से दूर,
पर मेरे ख्वाबों मे आने से इंकार मत करना.
तेरे सिवा न चाहा है कभी किसी और को,
कोई शिकवा नही, तू चाहे कभी अपनी चाहत का इजहार मत करना.
अगर एहसास हो मेरी मोहबत का मेरे जाने के बाद,
मेरे जनाजे पे आने से इनकार मत करना.
तेरी धड़कन को चाह कर भी न छू पाया अगर,
तो मेरे लिए आंसू कभी बर्बाद मत करना.

दिल के लिए क्यों अच्छा है लहसन


वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने यह रहस्य सुलझा लिया है कि क्यों लहसन खाने से हृदय स्वस्थ्य बना रहता है.
उनका कहना है कि मूल तत्व है, एलीसिन.
एलीसिन से ही सल्फ़र के यौगिक बनते हैं जिससे तेज़ गंध आती है और जिससे साँस में भी दुर्गंध बस जाती है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि सल्फ़र के ये यौगिक लाल रक्त कोशिकाओं के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और हाइड्रोजन सल्फ़ाइड बनाते हैं.
उनका कहना है कि हाइड्रोजन सल्फ़ाइड रक्त वाहिनियों को आराम पहुँचाता है और इससे रक्त का प्रवाह आसान हो जाता है.
यह शोध बर्मिंघम के 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ अलाबामा' में किया गया है और 'नेशनल अकैडेमी ऑफ़ साइंसेस' के प्रकाशन में प्रकाशित हुआ है.
हालांकि ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि लहसन की अतिरिक्त मात्रा खाने से साइट इफ़ेक्ट हो सकते हैं.
उल्लेखनीय है कि हाइड्रोजन सल्फ़ाइड वही रसायन है जिससे सड़े हुए अंडों जैसी गंध आती है और इस रसायन का उपयोग दुर्गंध फैलाने वाले बम बनाने में किया जाता है.
लेकिन जब इसकी सांद्रता कम होती हैं तो यह शरीर की कोशिकाओं के आपस में संपर्क क़ायम करने में अहम भूमिका निभाता है.
यह रक्त वाहिनियों की भीतरी सतह को आराम पहुँचाता है जिससे वाहिनियाँ नरम पड़ जाती हैं.
इसका असर यह होता है कि रक्तचाप या ब्लड प्रेशर कम हो जाता है और शरीर को कई अंगों तक ख़ून को ज़्यादा मात्रा में ऑक्सीजन ले जाने में सहायता मिलती है और इसके चलते हृदय पर दबाव कम हो जाता है.
प्रयोग
अलाबामा के वैज्ञानिकों ने चूहे की रक्त वाहिनियों को लहसन के रस में डूबोकर देखा.
उनका कहना है कि इसके नतीजे अद्भुत थे क्योंकि वाहिनियों के भीतर तनाव 72 प्रतिशत तक कम हो गया था.
हमारे प्रयोग के परिणाम बताते हैं कि खाने में लहसन को शामिल करना अच्छी बात है
डॉ डेविड क्राउस, प्रमुख शोधकर्ता

शोधकर्ताओं का कहना है कि सुपरमार्केट से ख़रीदे गए लहसन के रस के संपर्क में जब लाल रक्त कोशिकाओं को लाया गया तो वे तत्काल हाइड्रोजन सल्फ़ाइड का निर्माण करने लगे.
आगे किए गए प्रयोगों से पता चला कि यह प्रतिक्रिया रक्त कोशिकाओं के सतह पर ही होती है.
प्रमुख शोधकर्ता डॉ डेविड क्रॉउस का कहना है, "हमारे प्रयोग के परिणाम बताते हैं कि खाने में लहसन को शामिल करना अच्छी बात है."
उनका कहना था कि भूमध्यसागरीय और सुदूर पूर्व के इलाक़ों में, जहाँ लहसन का प्रयोग अधिक होता है, वहाँ हृदय रोग की शिकायतें कम पाई जाती हैं.
हालांकि ब्रिटिश हार्डफ़ाउंडेशन की हृदयरोग विभाग की नर्स जूडी ओ-सूलिवान का कहना है कि इस शोध से पता चलता है कि लहसन से दिल के रोगों में कुछ फ़ायदा हो सकता है.
लेकिन वे चेतावनी देकर कहती हैं कि इस बात के प्रमाण अपर्याप्त हैं कि लहसन का प्रयोग दवा के रुप में करने से हृदय रोग होने का ख़तरा कम हो जाता है।

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Whatever your cross,
whatever your pain,
there will always be sunshine,
after the rain ....
Perhaps you may stumble,
perhaps even fall,
But God's always ready,
To answer your call ...
He knows every heartache,
sees every tear,
A word from His lips,
can calm every fear ...
Your sorrows may linger,
throughout the night,
But suddenly vanish,
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The Savior is waiting,
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Whatever your cross,
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"God always sends rainbows ....
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Confessions of kid

Little Bobby came into the kitchen where his mother was making dinner. His birthday was coming up and he thought this was a good time to tell his mother what he wanted. "Mom, I want a bike for my birthday." Little Bobby was a bit of a troublemaker. He had gotten into trouble at school and at home. Bobby's mother asked him if he thought he deserved to get a bike for his birthday. Little Bobby, of course, thought he did.
Bobby's mother wanted Bobby to reflect on his behavior over the last year. "Go to your room, Bobby, and think about how you have behaved this year.
Then write a letter to God and tell him why you deserve a bike for your birthday." Little Bobby stomped up the steps to his room and sat down to write God a letter.

Letter 1:
Dear God, I have been a very good boy this year and I would like a bike for my birthday. I want a red one. Your friend, Bobby
Bobby knew that this wasn't true. He had not been a very good boy this year, so he tore up the letter and started over.

Letter 2:
Dear God, This is your friend Bobby. I have been a good boy this year and I would like a red bike for my birthday. Thank you. Your friend Bobby
Bobby knew that this wasn't true either. So, he tore up the letter and started again.

Letter 3:
Dear God, I have been an "OK "boy this year. I still would really like a bike for my birthday. Bobby
Bobby knew he could not send this letter to God either. So, Bobby wrote a fourth letter.

Letter 4:
God, I know I haven't been a good boy this year. I am very sorry. I will be a good boy if you just send me a bike for my birthday. Please! Thank you, Bobby
Bobby knew, even if it was true, this letter was not going to get him a bike.

Now, Bobby was very upset. He went downstairs and told his mom that he wanted to go to church. Bobby's mother thought her plan had worked, as Bobby looked very sad. "Just be home in time for dinner," Bobby's mother told him.
Bobby walked down the street to the church on the corner. Little Bobby went into the church and up to the altar. He looked around to see if anyone was there. Bobby bent down and picked up a statue of the Mary. He slipped the statue under his shirt and ran out of the church, down the street, into the house, and up to his room. He shut the door to his room and sat down with a piece of paper and a pen. Bobby began to write his letter to God.

Letter 5:
God, I'VE KIDNAPPED YOUR MOM . IF YOU WANT TO SEE HER AGAIN, SEND THE BIKE! !!!!!!!

अक्ल की वजह से

जून की गर्म दोपहरी में तीन आदमी सड़क के किनारे गङ्ढा खोद रहे थे। उनका बॉस पास ही पेड़ की छाया में खड़ा था। एक आदमी बोला -
''देखो, हम यहां धूप में मर रहे हैं और हमारा अफसर छाया में आराम से खड़ा है। ये अन्याय क्यों हैं ?''''
पता नहीं।'' - दूसरे ने कहा ।
''मैं पूछकर आता हूं'' - पहले ने कहा
और अफसर के पास गया।
''हम लोग धूप में काम कर रहे हैं और आप यहां छाया में खड़े हैं। ऐसा क्यों है? - उसने पूछा।
''अक्ल की वजह से'' - अफसर ने कहा ।
''क्या मतलब ? '' - आदमी ने पूछा।
''मतलब ये कि मैं तुमसे ज्यादा अक्लमंद हूं ।'' - अफसर ने कहा। ''वो कैसे ? साबित कीजिये'' आदमी ने कहा। ''ठीक है ।
देखो मैं अपना हाथ इस पेड़ पर टिकाता हूं। अब तुम फावड़ा मेरे हाथ पर मारो।'' - अफसर ने कहा।
आदमी ने जैसे ही उसके हाथ पर वार किया अफसर ने अपना हाथ वहां से हटा लिया। फावड़ा तने में जाकर लगा।
''यही अक्लमंदी है। समझे ?'' - अफसर ने मुस्कराते हुये कहा।
आदमी सर झुकाये वापस चला गया। उसके साथी ने पूछा - ''उन्होंने क्या कहा ?''''
उन्होंने कहा हम लोगों में अक्ल कम हैं इसीलिये हम यहां हैं।''
''क्या मतलब? अक्ल कम है !'' - साथी ने पूछा ।
आदमी ने सिर खुजाया और अपने दूसरे साथी के सिर पर हाथ रखकर तीसरे से कहा - ''फावड़ा उठाओ और मेरे हाथ पर मारो।''

प्यार का PC

अपने चेहरे से रूसवाई की Error तो हटाओ
ऐ जानेमन अपने दिल का Password तो बताओ

वो तो हम है जो आप की चाहत दिल मॆं रखते है
वरना आप जैसे कितने Softwares तो बाज़ार में बिकते है

रोज़ रात आप मेरे सपने में आते हो
मेरे प्यार को Mouse बना के उंगलियों पे नचाते हो

तेरे प्यार का Email मेरे दिल को लुभाता है
पर बीच में तेरे बाप का Virus आ जाता है

और करवाओगे हमसे कितना इन्तजार
हमारे दिल की साईट पे कभी Enter तो मारो यार

अपने इन्सल्ट का बदला देखो कैसे लुंगा
जानेमन तेरे बाप को Ctrl+Alt+Delete कर दुंगा

आपके कई नखरे अपने दिल पे बैंग हो गये
दो PC जुड़ते जुड़ते Hang हो गये

आप जैसो के लिये दिल को Cut किया करते है
वरना बाकी केसेस में तो Copy Paste किया करते हैं

आपक हँसना आप क चलना आप की वो स्टाईल
आपकी अदाओं की हमने Save कर ली है File

जो सदीयों से होता आया है वो रीपीट कर दुंगा
तु ना मिली तो तुझे Ctrl+Alt+Delete कर दुंगा

लड़कीयां सुन्दर हैं और लोनली हैं
प्रोब्लम है कि बस वो Read Only है

हिंदी तेरे दर्द की, किसे यहाँ परवाह

हिंदी तेरे दर्द की, किसे यहाँ परवाह,
एक अंग्रेजी साल, एक हिंदी सप्ताह
धड़कन मैं इंग्लेंड हैं, मुँह पर हिंदुस्तान,
ऐसे मैं हो किस तरह, हिंदी का उत्थान
निज भाषा, निज राष्ट , निज संसकृत से परहेज,
गोरों कि आगे हुए, हम काले अंग्रेज
स्वाभिमान को बेचकर, जारी जिनके जश्न,
हैं फिजूल उनके लिए, निज भाषा का प्रस्न
अंग्रेजी के मोह मैं खोई निज पहचान,
घर के रहे, न घाट के, हम धोबी के श्वान
दिल्ली तेरे न्याय पर, कैसे हो विश्वास,
अंग्रेजी को राजसुख, हिंदी को बनवास
भाषा-संसकृत से रहा, यदि यूँ ही बिद्वेष,
आने वाली पीढियॉ, ढूँडेगी अवशेष
हिंदी का खाकर गुने, जो अंग्रेजी गीत,
हे प्रभु ! सौ दुश्मन मिले, मिले न ऐसा मीत

लड़की, भाभी या मां?

मेरी समझ में नहीं आता कि मैं तुम्हें क्या कहूं
लड़की, भाभी या मां?
क्योंकि पहली बार तुम्हें उस समय देखा
जब मां ने मुझे भेजा था
भइया के लिए लड़की देखने
तब तुम लगी थीं एक अच्छी लड़की
दूसरी बार उस समय देखा
जब भइया के साथ विदा होकर
घर आई थीं तुम
तब एक अच्छी सी भाभी नजर आई थीं
आज देख रही हूं, तीसरी बार
जब तुमने एक बेटी को दिया है जन्म
मां का स्वरूप ग्रहण किया है
देख रही हूं तुम्हारी दृष्टि में
मुझमें और तुम्हारी बेटी में तुम्हें
नजर नहीं आ रहा है कोई अंतर
इसीलिए आज तुम्हारे लिए
मां का संबोधन मुझे बहुत भा रहा है
लगता है मुझे कि यह सम्बोधन
आज तुम्हारे लिए सबसे उपयुक्त है, सही है
क्योंकि आज मेरे पास सब कुछ है
लेकिन मां नहीं है
और शायद इसीलिए
मां ने पहली बार मुझे भेजा था
तुम्हें देखने के लिए।
- प्रज्ञा द्विवेदी

फाइलें

लड़ गई, झूठे बहाने गढ़ गई ये फाइलें।
फाइलों को ढूंढने में बढ़ गई ये फाइलें॥

चप्पलें टूटीं, घिसीं, फिर आदमी भी पिस गया,
पीठ पर बैताल जैसी चढ़ गई ये फाइलें।

जिंदगी भर आफिसों के चक्रव्यूहों में फंसा,
नियति को अभिमन्यु जैसा कर गई ये फाइलें।

लोग ये देखा किए कि फाइलें आगे बढ़ीं,
वृत्त में घूमीं, वहीं फिर अड़ गई ये फाइलें।

कागजों की कीमतों पर बहस के ठेके लिए,
दस्तखत की बोलियों पर लड़ गई ये फाइलें।

लिखते-लिखते गुमशुदा होती गई दरख्वास्तें,
पढ़ते-पढ़ते और ज्यादा कढ़ गई ये फाइलें।

लोग बरसों निर्णयों की आस में बैठे रहे,
उत्तरों-प्रत्युत्तरों पर अड़ गई ये फाइलें।

बाबुओं की जान हैं और अफसरों की शान हैं,
फिर न जाने क्यूं हमें ही खल गई ये फाइलें।

रोली मिश्रा

हैप्पी Teacher’s Day

Teacher’s Day विशेष दिन हम सब के लिए, लेकिन आज की इस आपा - धापी वाली जिन्दगी मैं हम शायद सब कुछ भूल से गए हैं, आज याद करैं अपना वो बाल - पन जब हम खुश होते थे कि आज Teacher छुट्टी पर हैं, या फिर आज पिटने से बच गए और बहुत से बातें..........................


मैं अपने कुछ खास Teacher's को आज भी याद करता हूँ, और मिस भी बहुत करता हूँ उनमें कुछ तो आज इस धरती पर नही हैं, आज सिर्फ यही मेरे सारे Teacher के लिए तुम्हें शत शत नमन .......


वो
कौन सा है पद ,
जिसे देता ये जहाँ सम्मान ।
वो कौन सा है पद ,
जो करता है देशों का निर्माण ।
वो कौन सा है पद ,
जो बनाता है इंसान को इंसान ।
वो कौन सा है पद ,
जिसे करते है सभी प्रणाम ।
वो कौन सा है पद ,
जिकसी छाया में मिलता ज्ञान ।
वो कौन सा है पद ,
जो कराये सही दिशा की पहचान ।
गुरू है इस पद का नाम ।
मेरा सभी गुरूजनो को शत-शत प्रणाम ।

by:
Jyotsana,

कफन फाड़कर मुर्दा बोला

चमड़ी मिली खुदा के घर से
दमड़ी नहीं समाज दे सका
गजभर भी न वसन ढँकने को
निर्दय उभरी लाज दे सका

मुखड़ा सटक गया घुटनों में
अटक कंठ में प्राण रह गये
सिकुड़ गया तन जैसे मन में
सिकुड़े सब अरमान रह गये

मिली आग लेकिन न भाग्य-सा
जलने को जुट पाया इन्जन
दाँतों के मिस प्रकट हो गया
मेरा कठिन शिशिर का क्रन्दन

किन्तु अचानक लगा कि यह,
संसार बड़ा दिलदार हो गया
जीने पर दुत्कार मिली थी
मरने पर उपकार हो गया

श्वेत माँग-सी विधवा की,
चदरी कोई इन्सान दे गया
और दूसरा बिन माँगे ही
ढेर लकड़ियाँ दान दे गया

वस्त्र मिल गया, ठंड मिट गयी,
धन्य हुआ मानव का चोला
कफन फाड़कर मुर्दा बोला ।

कहते मरे रहीम न लेकिन,
पेट-पीठ मिल एक हो सके
नहीं अश्रु से आज तलक हम,
अमिट क्षुधा का दाग धो सके

खाने को कुछ मिला नहीं सो,
खाने को ग़म मिले हज़ारों
श्री-सम्पन्न नगर ग्रामों में
भूखे-बेदम मिले हज़ारों

दाने-दाने पर पाने वाले
का सुनता नाम लिखा है
किन्तु देखता हूँ इन पर,
ऊँचा से ऊँचा दाम लिखा है

दास मलूका से पूछो क्या,
'सबके दाता राम' लिखा है?
या कि गरीबों की खातिर,
भूखों मरना अन्जाम लिखा है?

किन्तु अचानक लगा कि यह,
संसार बड़ा दिलदार हो गया
जीने पर दुत्कार मिली थी
मरने पर उपकार हो गया ।

जुटा-जुटा कर रेजगारियाँ,
भोज मनाने बन्धु चल पड़े
जहाँ न कल थी बूँद दीखती,
वहाँ उमड़ते सिन्धु चल पड़े

निर्धन के घर हाथ सुखाते,
नहीं किसी का अन्तर डोला
कफन फाड़कर मुर्दा बोला ।

घरवालों से, आस-पास से,
मैंने केवल दो कण माँगा
किन्तु मिला कुछ नहीं और
मैं बे-पानी ही मरा अभागा

जीते-जी तो नल के जल से,
भी अभिषेक किया न किसी ने
रहा अपेक्षित, सदा निरादृत
कुछ भी ध्यान दिया न किसी ने

बाप तरसता रहा कि बेटा,
श्रद्धा से दो घूँट पिला दे
स्नेह-लता जो सूख रही है
ज़रा प्यार से उसे जिला दे

कहाँ श्रवण? युग के दशरथ ने,
एक-एक को मार गिराया
मन-मृग भोला रहा भटकता,
निकली सब कुछ लू की माया

किन्तु अचानक लगा कि यह,
घर-बार बड़ा दिलदार हो गया
जीने पर दुत्कार मिली थी,
मरने पर उपकार हो गया

आश्चर्य वे बेटे देते,
पूर्व-पुरूष को नियमित तर्पण
नमक-तेल रोटी क्या देना,
कर न सके जो आत्म-समर्पण !

जाऊँ कहाँ, न जगह नरक में,
और स्वर्ग के द्वार न खोला !
कफन फाड़कर मुर्दा बोला ।

- श्यामनन्दन किशोर

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगॆ
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

मुझसे मिलने को कौन विकल ?
मैं होऊँ किसके हित चंचल ?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

- हरिवंशराय बच्चन

उठो सोने वालों

उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।
वतन के फकीरो का फेरा हुआ है।।
उठो अब निराशा निशा खो रही है
सुनहली-सी पूरब दिशा हो रही है
उषा की किरण जगमगी हो रही है
विहंगों की ध्वनि नींद तम धो रही है
तुम्हें किसलिए मोह घेरा हुआ है
उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।।

उठो बूढ़ों बच्चों वतन दान माँगो
जवानों नई ज़िंदगी ज्ञान माँगो
पड़े किसलिए देश उत्थान माँगो
शहीदों से भारत का अभिमान माँगो
घरों में दिलों में उजाला हुआ है।
उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।

उठो देवियों वक्त खोने न दो तुम
जगे तो उन्हें फिर से सोने न दो तुम
कोई फूट के बीज बोने न दो तुम
कहीं देश अपमान होने न दो तुम
घडी शुभ महूरत का फेरा हुआ है।
उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।

हवा क्रांति की आ रही ले उजाली
बदल जाने वाली है शासन प्रणाली
जगो देख लो मस्त फूलों की डाली
सितारे भगे आ रहा अंशुमाली
दरख़्तों पे चिड़ियों का फेरा हुआ है।
उठो सोने वालों सबेरा हुआ है।

-वंशीधर शुक्ल

पतवार

बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम ।

पेड खडे फैलाए बाँहें
लौट रहे घर को चरवाहे
यह गोधुली, साथ नहीं हो तुम,

बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम ।

कुलबुल कुलबुल नीड-नीड में
चहचह चहचह मीड-मीड में
धुन अलबेली, साथ नहीं हो तुम,

बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम ।

जागी-जागी सोई-सोई
पास पडी है खोई-खोई
निशा लजीली, साथ नहीं हो तुम,

बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम ।

ऊँचे स्वर से गाते निर्झर
उमडी धारा, जैसी मुझपर-
बीती झेली, साथ नहीं हो तुम,

बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम ।

यह कैसी होनी-अनहोनी
पुतली-पुतली आँख मिचौनी
खुलकर खेली, साथ नहीं हो तुम,

बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम ।

- शिवमंगल सिंह सुमन

चाँदनी जी लो

शरद चाँदनी बरसी
अँजुरी भर कर पी लो

ऊँघ रहे हैं तारे
सिहरी सरसी
ओ प्रिय कुमुद ताकते
अनझिप क्षण में
तुम भी जी लो ।

सींच रही है ओस
हमारे गाने
घने कुहासे में
झिपते
चेहरे पहचाने

खम्भों पर बत्तियाँ
खड़ी हैं सीठी
ठिठक गये हैं मानों
पल-छिन
आने-जाने

उठी ललक
हिय उमगा
अनकहनी अलसानी
जगी लालसा मीठी,
खड़े रहो ढिंग
गहो हाथ
पाहुन मन-भाने,
ओ प्रिय रहो साथ
भर-भर कर अँजुरी पी लो

बरसी
शरद चाँदनी
मेरा अन्त:स्पन्दन
तुम भी क्षण-क्षण जी लो !

- अज्ञेय

आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
आज से दो प्रेम योगी, अब वियोगी ही रहेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बांधूँ,
किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये, यह योग साधूँ !
जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

आयेगा मधुमास फिर भी, आयेगी श्यामल घटा घिर,
आँख भर कर देख लो अब, मैं न आऊँगा कभी फिर !
प्राण तन से बिछुड़ कर कैसे रहेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

अब न रोना, व्यर्थ होगा, हर घड़ी आँसू बहाना,
आज से अपने वियोगी, हृदय को हँसना सिखाना,
अब न हँसने के लिये, हम तुम मिलेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

आज से हम तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे,
दूर होंगे पर सदा को, ज्यों नदी के दो किनारे,
सिन्धुतट पर भी न दो जो मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

तट नदी के, भग्न उर के, दो विभागों के सदृश हैं,
चीर जिनको, विश्व की गति बह रही है, वे विवश हैं !
आज अथइति पर न पथ में, मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

यदि मुझे उस पार का भी मिलन का विश्वास होता,
सच कहूँगा, न मैं असहाय या निरुपाय होता,
किन्तु क्या अब स्वप्न में भी मिल सकेंगे ?
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

आज तक हुआ सच स्वप्न, जिसने स्वप्न देखा ?
कल्पना के मृदुल कर से मिटी किसकी भाग्यरेखा ?
अब कहाँ सम्भव कि हम फिर मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

आह! अन्तिम रात वह, बैठी रहीं तुम पास मेरे,
शीश कांधे पर धरे, घन कुन्तलों से गात घेरे,
क्षीण स्वर में कहा था, "अब कब मिलेंगे ?"
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

"कब मिलेंगे", पूछ्ता मैं, विश्व से जब विरह कातर,
"कब मिलेंगे", गूँजते प्रतिध्वनिनिनादित व्योम सागर,
"कब मिलेंगे", प्रश्न उत्तर "कब मिलेंगे" !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?


- पं. नरेन्द्र शर्मा

मैंने आहुति बन कर देखा

मैं कब कहता हूं जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,
मैं कब कहता हूं जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने ?
कांटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,
मैं कब कहता हूं वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ?

मैं कब कहता हूं मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले ?
मैं कब कहता हूं प्यार करूं तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले ?
मैं कब कहता हूं विजय करूं मेरा ऊंचा प्रासाद बने ?
या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने ?

पथ मेरा रहे प्रशस्त सदा क्यों विकल करे यह चाह मुझे ?
नेतृत्व न मेरा छिन जावे क्यों इसकी हो परवाह मुझे ?
मैं प्रस्तुत हूं चाहे मिट्टी जनपद की धूल बने-
फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल बने !

अपने जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला है-
क्या वह केवल अवसाद-मलिन झरते आँसू की माला है ?
वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है-
वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन कारी हाला है

मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया-
मैंने आहुति बन कर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है !
मैं कहता हूं, मैं बढ़ता हूं, मैं नभ की चोटी चढ़ता हूं
कुचला जाकर भी धूली-सा आंधी सा और उमड़ता हूं

मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने
इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने !
भव सारा तुझको है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने-
तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने

- अज्ञेय

जिधर भी देखती हूँ

जिधर भी देखती हूँ तन्हाई नज़र आती है
आपके इंतज़ार में हर शाम गुज़र जाती है

मैं कैसे करूं गिला दिल के ज़ख्मों से हुज़ूर
आंसू छलकते हैं मेरी सूरत निखर जाती है

तोड़ दिए हैं मैंने अपने घर के सारे आईने
मेरी रूह मेरा ही चेहरा देख के डर जाती है

रो के हलके हो लेते हैं ज़रा से तेरी याद में. ...
ज़रा सी ना-मुरादों कि तबियत सुधर जाती है

असर करती यकीनन ग़र छू जाती उनके दिल को लेकिन
अफ़सोस के आह मेरी फ़िज़ाओं ही में बिखर जाती है

मैकदे में जब भी ज़िक्र आता है तेरे नाम का
शाम कि पी हुई सर ए-शाम ही उतर जाती है

कभी आ के मेरे ज़ख्मों से मुकाबला तो कर
ए ख़ुशी तू मुहँ छुप्पा के किधर जाती है

तुझे इन्ही काँटों पे चल के जान होगा
उनके घर को बस यही ऐक रहगुज़र जाती है .......

आरजू

आज के दौर मैं ए दोस्त ये मंजर क्यों है,
जख्म हर सर पै है, हर हाथ मैं पत्थर क्यों हैं।
जब हक़ीकत है कि हर जर्रे मैं तू रहता है फिर,
जमीं पर कहीँ मस्जिद कही मंदिर क्यों है

गीता सार

जीवन उनका नही yudhishitra जो इससे डरते हैं।
यह उनका जो चरण रोप निर्भय हो कर लड़ते हैं

ज्ञान

तीन बात अति गुप्त हैं, मन मैं राखो गोय,
धन-धर्मं और यात्रा, प्रकट न भाखो कोय
शत्रु इनके बहुत हैं, करें घात पर घात,
बात तनिक सी फैल कर, करें महा-उत्पात

ओशो

भूत कि परिधि को पार कर,
बर्तमान का रचियता
तथा भविष्य के अनन्त अज्ञात
की ओर निरंतर बढ़ता वक़्त जब कभी थकता है
तो पल भर को कहीँ रुकता है
और पीछे पलटकर देखता है
कि कहीँ उसके स्मृति के किसी कोने मैं
उसे चन्द मुस्कराते चेहरे दिख जायं जो
उसमें नवीन उर्जा का संचार कर उसे आगे बढने कि शक्ति प्रदान कर दें ।

नमन - ओशो

प्यार का इजहार .....

वीरान सी इस जिन्दगी में जब दोस्ती आपकी मिली,
लगा हमारी जिन्दगी भी अब है फिर से खिली.

आपकी मासूमियत पे हुवे हम फ़िदा,
चाहते रहेंगे आपको हम सदा.

भले ही चेहरा गए आपका भूल,
भा गए हमको आपके उसूल.

दोस्ती कब बदली मोहब्बत में पता यह ना चला,
जानता नही जो कर रहा हूँ वो बुरा है या भला.

रोकनी चाहि हमने यह चाह,
फिर लगा प्यार ही तो किया ना कोई गुनाह.

बेंतेहा करते है आपसे प्यार,
जिसका करते है हम आज इजहार.

अब तो हमारी है एक ही ख्वाहिश,
गौर करे हमारी आप यह गुजारिश.

सोच कर तो देखो इस बारे में ए हंसिनी,
क्या आप बनेंगे हमारी जीवन संगिनी ..................


बृजेश खंतवाल

कोशिश करने वालों कि हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
दीवारों पर चढ़ती है सौ बार फिसलती है

मन का विश्वास रगों में सहस भरता है
गिरकर चढ़ना, चढ़कर गिरना नहीं अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों कि हार नहीं होती

दुब्कियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा-जाकर खाली हाथ लौट आता है
सहज नहीं मोती पाना गहरे पानी में
दूना होता उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हरबार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो

कहा कमी रह गयी, देखो और सुधार करो
संघर्सों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
जबतक सफलता ना मिले नींद को त्यागो तुम
कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती


मह्त्वाकांक्षा को दूर करो

तुम जो हो, परमात्मा तुम्हे वैसा ही स्वीकार करता है, अन्यथा तुम होते ही नही तुम जैसे हो, परमात्मा तुम्हे वैसा ही स्वीकार करता है, अन्यथा वह तुम्हे बनता ही नही, वह दोहराता नही, पुनरुक्ती नही करता बुध कितने ही प्यारे हों , फिर भी दुबारा नही बनता, दुबारा तो बनाते ही वे कारीगर हैं, जिनकी प्रतिभा कम है कि नए को नही खोज पाते परमात्मा प्रतैक को अनूठा ओर नया बनाता है एक - एक को अद्वितीय बनाता है, राम कितने ही प्यारे हों, लकिन दुबारा ? ओर सोचो, अगर बहुत राम पैदा होने लगे तो बहुत बेमानी हो जायेगी , उबाने वाले भी हो जायेंगे और अभी राम के दर्शन कि इच्छा होती है, फिर उनसे भागने कि इच्छा होगी बस राम एक काफी हैं एक से जयादा मैं बात बासी हो जाती है, परमात्मा बासपन पसंद नही करता ।

तो तुम्हें इसलिये पैदा नही किया है कि तुम राम बन जाओ, कि तुम कृ़षण बन जाओ, कि तुम बुध बन जाओ तुम्हे पैदा किया किया है कुछ जो तुम्ही बन सकते हो और कोई भी नही बन सकता है ना पहले कोई बन सकता था, ना कोई बाद मैं बन सकेगा अगर तुम चूक जाते हो, तो अस्तित्त्व से वह घड़ी चूक जायेगी, वह तुम्ही बन सकते थे, तुम्हारे अस्तित्त्व कोई और उस नियति को नही प सकता था

छोड़ दो वो ख्याल कि तुम्हे कुछ और होना है, तुम्हे तो सिर्फ एक ही ख्याल होना चाहिऐ कि तुम्हे परमात्मा ने क्या बनाया है, उसे तुम्हे जानना है होना भी नही, वह तुम हो एक ही ख्याल रखो कि तुम कोई आदशॅ नही चाहिऐ, कोई तुम्हारे लिए ब्लू- प्रिंट कि जरूरत नही है कि इस भांति तुम हो जाओ


अध्यात्म कि खोज आदर्श कि खोज नही, अध्यात्म कि खोज तुम्हारे भीतर जो मौजूद ही है , उसका आविष्कार है, उसको उघाद लेना है।

मह्त्वाकांक्षा रुप:-

दूसरे जैसे होने कि आकंशा , एक

दूसरे से आगे होने कि आकंशा, दो


मह्त्वाकांक्षा का दूसरा अर्थ है, सदा यह फिक्र लगी रहती है कि पडोसी से मेरा मकान बड़ा कैसे हो जाये? कि पडोसी से मेरी इज़्ज़त ज्यादा कैसी हो जाय? कि पडोसी से मैं आगे कैसे निकल जाऊं? किसी ना किसी की तुलना मैं अपने को सोच रहें हैं, आपने अपने आप को सम्मान ही नही दिया, आप अपना ही अपमान कर रहे हैं, क्योंकि न पडोसी आप जैसा है, ओर ना आप पडोसी जैसा, दोनो कि कोई तुलना नही है, सब तुलना भ्रांत ओर गलत है, ओर आपको दूसरे से आगे होने के लिए नही भेजा गया है आपको तो अपने ही जैसा होने के लिए भेजा गया है, ओर दूसरे से आगे हो कर भी कया होगा? क्योंकि आप फिर पाएंगे कि कोई उसके भी आगे है इस दुनिया मैं कोई कभी नही पाता एसी जगह, जहाँ उससे आगे कोई न हो
ओशो - साधना सूत्र