Love Code

#include
#include
#define Cute beautiful_lady

void main()
{
goto college;
scanf("100%",&ladies);

if(lady ==Cute)
line++;
while( !reply )
{

printf("I Love U");

scanf("100%",&reply);

}

if(reply == "GAALI")
main(); /* go back and repeat the process */

else if(reply == "SANDAL ")
exit(1);



else if(reply == "I Love U")
{
lover =Cute ;
love = (heart*)malloc(sizeof(lover));
}

goto restaurant;

restaurant:
{
food++;
smile++;
pay->money = lover->money;
return(college);
}

if(time==2.30)
goto cinema;

cinema:
{
watch++;
if(intermission)
{
coke++;
Popecorn++;

}
}

if(time ==6.00)
goto park;
}
}
{
for(time=6.30;time<= 8.30;time+=0.001)
kiss = kiss+1;
}
free(lover);
return(home);
getch();
}

फर्क

पति के जन्मदिन पर पत्नी उन्हें तोहफा देती थी। वहीं पति भी पत्नी के जन्मदिन पर उसे तोहफा दिया करते थे। पत्नी गृहिणी थी। जाहिर था कि वह पति से ही पैसे लेकर अपनी पसंद के तोहफे उन्हें देती थी। तोहफे देते वक्त उसके मुंह से अनायास निकलता, लीजिए, मेरी तरफ से तोहफा!

पति सोचते, पत्नी मेरे ही पैसे से मुझे मेरे जन्मदिन पर तोहफे देती है तो उसे अपना क्यों बता देती है। एक बार पति के जन्मदिन पर पत्नी ने एक शर्ट पति को प्रेजेंट की और कहा, मेरी ओर से इसे कबूल कीजिए।

पति ने कहा, मैं तुम्हें तोहफा दूं या तुम मुझे तोहफा दो, बात तो एक ही है क्योंकि दोनों तोहफों में पैसा मेरा ही लगता है। फिर दोनों में फर्क क्या है?

पत्नी को बहुत बुरा लगा। वह पति के मन में छुपे भाव को ताड गई। उसने संयम दिखाते हुए कहा, तुम्हारे और मेरे तोहफे में स्वामित्व के लिहाज से कोई फर्क नहीं है।

मगर इस लिहाज से फर्क जरूर है कि जहां तुम्हारे तोहफे में पुरुषजन्य दर्प झलकता है वहीं मेरे तोहफे में प्रेम और विनम्रता होती है। ऐसा बेबाक जवाब सुनकर पति महोदय सकपका गए।

[ज्ञानदेव मुकेश]

शादी की दास्तान

अभी शादी का पहला ही साल था,
खुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
खुशियाँ कुछ यूँ उमड़ रहीं थी,
की संभाले नही संभल रही थी,

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना
थोड़ा शरमाते हुए हमे नींद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिरना,
मुस्कुराते हुए कहना की डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो जाओ, आप को ऑफिस भी है जाना.

घरवाली भगवन का रूप ले कर आई थी,
दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
साँस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था.

*5 साल बाद*

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना,
टेबल पर रख कर ज़ोर से चिल्लाना,
आज ऑफिस जाओ तो मुन्ना को स्कूल छोड़ते हुए जाना.

एक बार फिर वोही आवाज़ आई,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नही चारपाई,
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना,
मुन्ना की टीचर्स को फिर ख़ुद ही संभाल लेना.

न जाने घरवाली कैसा रूप ले कर आई थी,
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
साँस भी लेते है तो उनी का ख्याल होता है,
हर समय ज़हन में एक ही सवाल होता है,
क्या कभी वो दिन लौट के आएंगे,
हम एक बार फिर कुवारें बन पाएंगे.

अथ दीवाली गाथा

आजकल मुन्ना भाई पर धुन सवार है कि वो भी भाईगिरी छोडकर चैनल वाले बाबाओं की तरह प्रवचन देना, कथा करना शुरू करेगा और उसने सर्किट से वादा किया है कि वो केवल प्रवचन करेगा, लाईट, टेंट, माइक का ठेका अन्य बाबाओं की तरह खुद नहीं लेगा बल्कि सारे ठेके सर्किट को देगा। मुन्नाभाई ने दीपावली से कथा करने का निर्णय लिया है। फिलहाल वे अपने प्रवचन का पहला प्रहार सर्किट पर कर रहे हैं- तो इति सम्प्रति वार्ता शूयन्ताम।)

अे सर्किट! तेरे को पता है ना कि रामजी कौन थे?
अे भाय! कइसा बहकी-बहकी बात कर रेले हो अपुन राम को जानता तो नेता-वेता नई होता बाप! अपुन को इतना इच पता है कि रामजी अपुन का कंट्री में पैदा हुयेले थे। इसके आगे पूछना हो तो खुद रामजी से पूछना या फिर गोरमेंट से, अपुन सॉरी बोलता भाय!
अरे नई रे, तेरे नालिज के आगे तो अपुन कान पकडता है। तेरे को कम से कम ये तो पता है कि राम जी अपने इच कंट्री में पैदा हुयेले थे। तेरे नालिज के वास्ते अपुन तेरे को अभी इच नोबल प्राइज देता, पर ये अभी अपुन के हाथ में नई है रेऽऽऽ
कोई बात नहीं भायऽऽ, हाथ में आ जाये तब देना। अभी तो रात को आक्खा शहर का शटर डाउन होयेंगा। पर हां.. भाय.. ये तुम रामजी का बात किया तो अपुन थोडा इमोशनल हो गया भाय। अपुन को रामजी का थोडा बैक ग्राउन्ड हिस्ट्री बताओ ना भाय तुम तो सीधा गांधी जी के टच में हो वो भी आक्खा लाइफ एक इच सोंग सिंगते रहे- रघुपति राघव राजा राम।
वो अपुन को राम जी के बारे में गांधी जी ही ब्रीफ कियेले थे- बोले तो, राम जी अयोध्या के किंग के प्रिंस थे। फिर बोले तो रामजी के फादर ने अपना सैकण्ड वाइफ को कुछ जुबान दियेले थें, इसी जुबान के चक्कर में रामजी फोरेस्ट टू फोरेस्ट घूमे। फोरेस्ट में रावण ने रामजी की वाईफ को हाइजैक (यहां मुन्नाभाई का तात्पर्य अपहरण से है) कर लिया और उनको अशोका गॉर्डन (यहां इनका तात्पर्य अशोक वाटिका से रहा होगा) ले गया। फिर राम जी ने रावण के आक्खा खानदान की वाट लगा दी और फिर बोले तो रावण को खलास कर दिया फिर वो वापस अपने देश आ गये और आक्खा इंडिया ने दीवाली मना डाली।
क्या बोल रेले हो भायऽऽ। ये लक्ष्मी जी कौन है भाय? क्या ये रामजी से भी पॉवरफुल है?
ये सब पइसे का चक्कर है रे सर्किट। पइसा-पइसा-पइसा, जब अंटी में हो पइसा, तो फिर राम कइसा। अभी लक्ष्मी बोले तो- पइसा, रोकडा, पेटी, खोखा- ये बहुत चंचल है रे। हसबैण्ड बोले तो- बोले तो, विष्णुजी- वेरी स्मार्ट, पॉवरफुल रोकडे वाला.. पर ये लक्ष्मी आंटी ना उनके पास भी टिकती इच किधर है।
अे भाय!- ये केलकुलेशन अपुन के समझ में नहीं आया, हसबैण्ड इतना स्मार्ट, इतना पावरफुल है तो ये साथ काय को नहीं रहेली है?
तू भी पकिया के माफक पक गयेला है रेऽऽ, अपुन को गांधी जी ने रहीम जी का एक शेर सुनाया। लक्ष्मी जी के बारे में। शेर तो अपुन को पूरा याद नई रे-पन.. बोले तो-
कमला स्टेबल नहीं, बोले तो ये इच जानता सब कोय।
ये पुरुष पुरातन का वाइफ है, बोले तो क्यों न चंचल होय॥
वाह भाय वाह.. क्या शेर मारा है.. इसका मीनिंग बोले तो- ?
बोले तो.. जइसे ये वो इच कमला के माफिक है, जिसको हर कोई छतरी के नीचे बुलाने को मांगता, कोई घर बुलाने का मांगता, कोई आफिस, कोई तिजोरी में, कोई गल्ले में। दूसरा- ये कमला; बोले तो लक्ष्मी स्टेबल नहीं है रेऽ, एक जगह टिकती इच नहीं, और इसका पुरुष यानी हसबैण्ड बहुत पुराना है रे इसी वास्ते ये बहुत चंचल है, जैसे, अपुन का चिंकी (यहां उनका आशय उनकी गर्लफ्रेन्ड से है), तेरा जीभ, बोले तो फुल टाइम लपर-लपर करेली है और ये बाटली (शास्त्रों में भी लक्ष्मी, स्त्री, जिह्वा व मदिरा को चंचला कहा गया है)
अे भाय! लोग लक्ष्मी को कइसे-कइसे इनवाइट करते हैं और ये एन्ट्री कैसे करती है?
अे सर्किट! लक्ष्मी आंटी को लोग दो तरह से इनवाइट करता इच है पहला- गांधी से दूसरा- दादागिरी से।
अे भाय। थोडा खुल के बोलो ना भाय।
अरे गांधीगिरी बोले तो अहिंसा से, उसका तारीफ करके, उसको मसका मारके- बोले तो- अे लक्ष्मी माई तुम गोल्ड के माफक पीली, चंद्रमा के माफिक व्हाइट-झक्कास, चांदी की माला पहनेली, हिरणी का टाइप चंचल, तुम अपुन के घर आओ।
(ॐ हिरण्यवर्णारिणीं सुवर्ण रजत स्त्रजाम चंद्रा हिरण्य मयीं लक्ष्मी जात वेदो म आ वह) श्री सूक्तम्
दूसरा बहुत सॉलिड तरीका है रे सर्किट, भाई लोगों वाला लक्ष्मी के बेटे किसी सेठ का भेजे में बंदूक रखने का, घोडा पे अंगुली रखने का, लक्ष्मी रनिंग करता हुआ तुम्हारे पास आयेंगा। दीवाली के दिन लक्ष्मी को बुलाने का फार्मूला आउट डेटेड टाइप के लोगों का हय रे। एक और बिन्दास तरीका है, लक्ष्मी जी के ड्राइवर कम व्हीकल यानि उल्लू की कनपटी पे घोडा तानो, लक्ष्मी जी अगर अहमदाबाद जा रेली होयेंगी तो दिल्ली का रूट पकड लेंगी।
अे भाय! वो एन्ट्री वाली बात?
वो इच बता रेला हूं रे.. इसका एन्ट्री बहुत धमाकेदार बहुत ब्लास्टिंग होता। किदर से भी एन्ट्री करना इसका पुराना स्टाइल है रे। अभी ये रात को बारा बजे दीवार फांदकर आये या खिडकी तोडकर ये इसका मरजी है। ये टेबल के नीचे से आये या टिफिन के अंदर से, डर से आये या टेण्डर से, गोली से आये या बोली से टोटली उस पर डिपेण्ड करता है। और ये दो कलर को बहुत लव करती है- ब्लैक एंड व्हाइट-बोले तो, गोरी और काली। अपुन इंडियन लोगों को काली लक्ष्मी जी बहुत स्मार्ट लगती है-बोले तो ब्लैक ब्यूटी और मनी-व्हेरी चार्मिग।
अे भाय ये ब्लैक लक्ष्मी- व्हाइट कैसे होती है?
जब ये साधु-बाबाओं के पास जाती है। इदर ये बाबा लोग बहुत पॉवर फुल है.. इनका खोली में कोयला घुसता है, दूध बाहर निकलता है। इदर आदमी लंगोट लगाकर आता है, लुंगी लगाकर जाता है। वो आरती नहीं सुना.. सब संभव हो जाता मन नहीं घबराता- बोले तो-जै लक्ष्मी माता।

Tears

How do you fight tears?
Tears of sorrow and pain;
Tears of loss not gain,
Tears which follow no rules.

How do you fight tears?
And put on an act,
When you know it's a fact;
That you can't fight tears...

सप्ताह के 7 दिनों का धार्मिक महत्व

प्राचीनकाल से सप्ताह के सातों दिन, किसी न किसी खास देवी या देवता को समर्पित हैं। उनमें देवी-देवताओं के पूजन का विधान इस प्रकार है :

सोमवार
इस दिन रजतपात्र या ताम्रपात्र में गंगाजल और दुग्ध मिश्रित जल भगवान शिव को अर्पण करें तथा शिवलिंग पर आक के फूल, बेलपत्र, धतूरा, भांग, चंदन आदि समर्पित करें। ध्यान रखें शिवजी को रोली नहीं चढाई जाती है।

आहार : दूध और इससे बनी चीजें दही, श्रीखंड, खोये के पेडे, बर्फी आदि ग्रहण करें। साथ ही आप केला, सेब, अमरूद, चीकू आदि का भी सेवन कर सकते हैं।

पूजन व जप : चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से विधिवत श्री शिवजी का पूजन करके रुद्रसूक्त, शिवमहिम्न स्त्रोत, शिव चालीसा आदि का पाठ करें और ॐ नम: शिवाय मंत्र का जप करें।

वस्त्र : मोतिया या हलके भूरे रंग के वस्त्र धारण करें। कुंआरी कन्याएं श्रेष्ठ पति की प्राप्ति के लिए और विवाहिताएं दांपत्य जीवन की मधुरता बनाए रखने के लिए यह व्रत रखें।

मंगलवार
इस दिन तांबे या रजत पात्र में गंगाजल या शुद्ध सुगंधित जल लेकर, उससे हनुमान जी को स्नान कराएं। इसके अलावा चमेली के तेल या गाय के घी में सिंदूर मिलाकर और सिंदूरी अथवा भगवा रंग के वस्त्र उन्हें चढाएं। गुड, चना, चूरमा, लड्डू व बूंदी अर्पण करें।

आहार : दूध, दही, पनीर, श्रीखंड, अन्नरहित मिष्ठान और फल ले सकते हैं।

पूजन व जप : गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से हनुमान जी का पूजन करें और ॐ हं हनुमते नम: अथवा हनुमत् द्वादश नामों का स्मरण और हनुमान चालीसा पाठ करें।

वस्त्र : सिंदूरी लाल रंग के वस्त्र धारण करें।

बुधवार
रजत या ताम्र पात्र में गंगाजल व केवडा आदि से सुगंधित पदार्थयुक्त जल गणेश जी को अर्पित करें। साथ ही ऋद्धि-सिद्धि एवं शुभ-लाभ का भी पूजन करें। गणेश जी को हरी दूब अर्पण करने से इष्ट सिद्धि, मनोरथ प्राप्ति तथा वंश वृद्धि होती है।

पूजन व जप : गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से श्री गणपति का पूजन करें और ॐ श्री गणेशाय नम: मंत्र का जाप करें।

वस्त्र : आहार के रूप में दूध और इससे बने पदार्थो का प्रयोग करें तथा फल भी ग्रहण कर सकते हैं।

वस्त्र : मोतिया, हरा या श्वेत वस्त्र धारण करें।

बृहस्पतिवार
इस दिन रजत या ताम्र पात्र में शुद्ध जल या गंगाजल, गुलाबजल, केवडा व इत्र आदि मिश्रित जल भगवान विष्णु को अर्पण करें। अगर भगवान की प्रतिमा न हो तो केले के पेड की पूजा करें।

आहार : दूध, दही, मिष्ठान, फल आदि ग्रहण करें। केला इस दिन नहीं खाएं।

पूजन व जप : गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से भगवान लक्ष्मीनारायण अथवा श्री विष्णु की मूर्ति की पूजा करें तथा ॐ विष्णवे नम: अथवा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जाप करें। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम पाठ भी शुभ फलदायी सिद्ध होता है।

आहार : पीले रंग के वस्त्र धारण करें ।

शुक्रवार
इस दिन रजत या ताम्र पात्र में शुद्ध जल या गंगाजल, गुलाब जल श्री लक्ष्मी जी को अर्पण करके गंध, अक्षत, पुष्प, दीप नैवेद्य से विधिवत पूजन करें। इसी दिन मां संतोषी का व्रत एवं वैभव लक्ष्मी व्रत भी किया जाता है।

आहार : शुक्रवार को खटाई न तो खाएं और न ही स्पर्श करें। दूध, फल, गुड, चना व बेसन से निर्मित पकवानों को ग्रहण करें।

जप : ॐ श्री महालक्ष्म्यैनम:, ॐ श्री वैभवलक्ष्म्यैनम: मंत्रों का जाप करें। श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त आदि स्त्रोतों का पाठ करें।

वस्त्र : लाल, गुलाबी या भूरे रंग के वस्त्र धारण करें।

शनिवार
इस दिन ग्रहों की प्रसन्नता के लिए नवग्रहों का गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन, जप, दान, तर्पण आदि करना चाहिए। विशेष रूप से शनिवार शनिग्रह के लिए पूजनादि का उपयुक्त दिन है। पूजन के पश्चात नवग्रहों को तेल, सिंदूर, उडद, दही आदि अर्पण करें। इस दिन शनिग्रह की शांति के लिए सरसों के तेल का दान करें।

आहार : तेल व बेसन निर्मित पदार्थो को ग्रहण करें तथा दुग्ध, फल आदि ग्रहण करें।

जप : इस दिन शनि प्रतिमा पर सरसों का तेल व सिंदूर चढाकर ॐ शनिदेवाय नम: या ॐ शनै: शनिश्चराय नम: मंत्र का जाप करें।

वस्त्र : नीले या आसमानी वस्त्र धारण करें।

रविवार
इस दिन तांबे के पात्र में गंगाजल, रोली, शक्कर मिले हुए जल से भगवान् सूर्य को अ‌र्घ्य प्रदान करें। गंध, अक्षत, पुष्प, दीप, नैवेद्य से पूजा करें। सूर्य मंत्र का जाप करें। सूर्य के विभिन्न नामों का स्मरण करते हुए सूर्य नमस्कार करें। सूर्य सूक्त का पाठ करें।

आहार : इस दिन केवल मीठा भोजन जैसे - खीर, दूध, हलवा, फल आदि ग्रहण करें।

जप : ॐ घृणि: सूर्यायनम: मंत्र का जाप करें। आदित्यहृदय स्त्रोत का पाठ करें। गायत्री मंत्र का जाप और यदि संभव हो तो हवन करें।

वस्त्र : इस दिन हलके लाल या भूरे रंग के वस्त्र धारण करें।

नोट : सप्ताह के सातों दिनों के लिए वस्त्रों के जो रंग बताए गए हैं, अगर किसी कारणवश आप उस दिन बताए गए खास रंग का वस्त्र धारण न कर सकें तो अपने पास उस रंग का रूमाल या फूल रखें।

सारे कमरे बांट लिए ..



सारे कमरे बांट लिए हैं बेटों ने बटवारे में।
अब्बा-अम्मा का बिस्तर अब लगता है ओसारे में॥

बिजली के बिल की तानें तो बन कर कहर टूटती हैं।
रातें उनकी जगते-जगते कटती हैं अंधियारे में॥

बेटों के सर बीवी-बच्चों की भी जिम्मेदारी है।
किसको फुर्सत सोचे अम्मा-अब्बा जी के बारे में॥

जाने कितने राज छुपे हैं दिल के कोनों-खदरों में।
जाने कितने दर्द बह गए हैं आंसू के धारे में॥

शाहिद अब तो घर के ऊपर उनका ही अधिकार नहीं।
जिनका खून-पसीना शामिल है इस घर के गारे में॥


शाहिद वारसी

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - रचनाकर्म

नई दिल्ली। फुटपाथ पर सर्दियों में ठिठुरती भिखारिन को पशमीने का शाल ओढा देना, गंतव्य तक पहुंचकर रिक्शे वाले को कभी दस गुना किराया देना तो कभी झन्नाटेदार थप्पड जड देना, जेठ की भरी दोपहर में मजदूर को चीनी का शरबत पिलाना।

ये किस्से किसी विक्षिप्त व्यक्ति की जीवनचर्या का हिस्सा नहीं अपितु हिंदी साहित्य में छायावाद की स्वछंदतावादी विचारधारा के प्रणेता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से जुडे हैं। इस तरह के न जाने कितने किस्से इलाहाबाद के लोगों के मुंह से सुनने को मिल जाएंगे। इलाहाबाद के दारागंज इलाके में निराला ने अपने रचनाकर्म का स्वर्णिम दौर गुजारा था।

मैदनीपुर बंगाल में 1857 को जन्मे निराला का परिवार मूलत: बैसवाडा उन्नाव के गढागोला का निवासी था। निराला ने कोलकाता में रामकृष्ण मिशन के पत्र समन्वय का संपादन किया और रामकृष्ण साहित्य का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद किया। वर्तमान में उपलब्ध मिशन के साहित्य के बडे अंश के अनुवादक निराला ही हैं। कालांतर में निराला तीन वर्ष लखनऊ में मतवाला के संपादक मंडल में रहे बाद में सुधा पत्रिका में संपादकीय लिखने लगे। मगर निराला के फक्कड और अक्खड स्वभाव को कहीं का काम रास नहीं आया।

आखिरकार निराला आजादी से पहले लखनऊ छोडकर इलाहाबाद आ गए। आरंभ में वह महादेवी वर्मा की साहित्यकार संसद में रहे। तामसी भोजन के शौकीन निराला ने साहित्यकार संसद को त्याग दिया। निराला वहां से इलाहाबाद के दारागंज आ गए जहां वे मसूरियादीन पंडा, घनश्याम घाटिया, चंद्रकांता त्रिपाठी और श्रीनारायण चतुर्वेदी के मकानों में रहे मगर कहीं भी उनका सामंजस्य नहीं बन सका। निराला के फकीराना स्वभाव को दारागंज मिजाज इतना भाया कि वे कमलाशंकर के संरक्षण में स्थायी अतिथि के रूप में रहने लगे। जहां वे अंत समय 1961 तक रहे।

कमलाशंकर स्वयं वैद्य अम्बिका प्रसाद अवस्थी के मकान में किरायेदार थे। सूत्र बताते हैं कि निराला का कुछ सामान आज भी दारागंज कोतवाली में रखा हुआ है क्योंकि किरायेदार किसी को अपने यहां किराये पर नहीं रख सकता।

निराला को जानने वालों से जब निराला के अनगढ और फकीर व्यक्तित्व के बारे में जानने का प्रयास किया गया तो वैद्य अंबिका प्रसाद अवस्थी स्मृतियों में लौटते हुए बताते हैं कि एक बार मैंने पूछा आप कविता कैसे लिख लेते हैं तो निराला काफी देर तक गली में टहलते रहे और फिर पास बुलाकर कहा कि कविता क्रोध, प्रेम और रोग की तरह ही अंतर्मन से बाहर आती हैं।

निराला के करीबी लोगों में से एक 94 वर्षीय रंगकर्मी व इलाहाबाद आकाशवाणी की कलाकार चंद्रकांता त्रिपाठी ने बताया लोक संगीत के शौकीन निराला बडे ही भावुक व्यक्ति थे। वह तोडती पत्थर की श्रमिक महिला बिंब मात्र नहीं थी बल्कि निराला उसे खुद खाना देने गए थे।

वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार नरेश मिश्र ने बताया कि साढे छह फुट की ऊंचाई, धवल बाल और अधखिचडी लंबी दाढी और विराट व्यक्तित्व वाले निराला की तुलना जूलियस सीजर या किसी ग्रीक योद्धा से की जा सकती है।

साहित्यकार गोपेश्वर गोपेश से जुडा एक किस्सा मिश्र ने बताया कि एक दफा गोपेश निराला से मिलने पहुंचे। इत्तेफाक से निराला पेडे खाते हुए मिल गए। निराला ने गोपेश को भी पेडे खाने को दिए। चार पेडे खाने के बाद गोपेश और पेडे नहीं खा सके। निराला ने कहा, गोपेश चंदवरदाई का नाम सुना है ना। जो कलम से पृथ्वीराज रासो लिखता था और रणभूमि में युद्ध जीतता था और आज के साहित्यकार कितने सुकुमार हैं जो कुछ पेडे भी नहीं खा सकते। गोपेश मौन निराला को ताकते रह गए।

उन्होंने बताया कि फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर से मिलने के बाद निराला के मुख से अकस्मात निकला आज मिला है मुझे कोई जोडीदार। एक बार एक शोधार्थी निराला के पास आया और पूछा छायावाद क्या है तो निराला उसे लेकर गंगा के घाट पर पहुंच गए। और कभी गंगा स्नान नहीं करने वाले निराला गंगा में उतर गए। छात्र को भी अंदर बुला लिया और पूछा आया समझ में छायावाद। नकारने पर सिर पकडकर गंगा में डुबो दिया और पूछा अब समझ में आया छायावाद छात्र ने फिर मना किया तो निराला ने कहा जा तुझे कभी समझ नहीं आएगा क्या होता है छायावाद।

क्या लिखूँ..??

कुछ जीत लिखूँ या हार लिखूँ..
या दिल का सारा प्यार लिखूँ..

कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखूँ या सापनो की सौगात लिखूँ..
मै खिलता सुरज आज लिखूँ या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ..

वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सांस लिखूँ..
वो पल मे बीते साल लिखूँ या सादियो लम्बी रात लिखूँ..

सागर सा गहरा हो जाऊं या अम्बर का विस्तार लिखूँ..
मै तुमको अपने पास लिखूँ या दूरी का ऐहसास लिखूँ..

वो पहली -पहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ..
सावन की बारिश मेँ भीगूँ या मैं आंखों की बरसात लिखूँ..

कुछ जीत लिखूँ या हार लिखूँ..
या दिल का सारा प्यार लिखूँ..

नया मनुष्य

ओशो, उद्धरण : फ़िलॉसफिया पैरेनिस

आनंदित हों कि पुराना मर रहा है... नया मनुष्य कोई युद्धक्षेत्र नहीं है, विभाजित व्यक्तित्व नहीं है बल्कि एक अविभाज्य मानव की प्रतिमा है, अद्वितीय, जीवन के साथ समग्रता से सहक्रियाशील। नया मनुष्य मूर्तरूप है अधिक सक्षम, रूपांतरित व्यक्तित्व का, ब्रह्मांड में नये ढंग से होने का, सत्य को एक गुणात्मक भेद से देखने और अनुभव करने का। तो कृपा करें और अतीत के बीत जाने का शोक न मनाएं। आनंदित हों कि पुराना मर रहा है, रात्रि विदा हो रही है और क्षितिज पर पौ फटने लगी है। मैं प्रसन्न हूं, अत्यंत प्रसन्न हूं कि पारंपरिक मनुष्य विदा हो रहा है--कि पुराने चर्च खंडहर बन रहे हैं, कि पुराने मंदिर सूने पड़े हैं। मुझे असीम प्रसन्नता है कि पुरानी नैतिकता धरती पर चारों खाने चित्त पड़ी है। यह एक महान संकट की घड़ी है। यदि हम चुनौती स्वीकार कर लें तो यह एक अवसर है नये को निर्मित करने का।

अतीत में इतना उपयुक्त समय कभी भी नहीं था। तुम अत्यंत सुंदरतम युग में रह रहे हो, क्योंकि पुराना विदा हो रहा है, या विदा हो गया है, और एक अराजकता पैदा हो गयी है। और अराजकता में से ही महान सितारों का जन्म होता है। तुम्हारे पास एक सुअवसर है पुनः नये ब्रह्मांड को निर्मित करने का। यह एक अवसर है जो दुर्लभ है, कभी-कभी आता है। तुम सौभाग्यशाली हो कि ऐसे संकट के समय मौजूद हो। इस अवसर को नये मनुष्य के निर्माण करने में प्रयोग कर लो। और अभिनव मनुष्य को निर्मित करने के लिए तुम्हें स्वयं से शुरू करना होगा। नया मनुष्य सब कुछ एक साथ होगा ः रहस्यदर्शी, कवि और वैज्ञानिक। वह जीवन को पुराने, सड़े-गले विभाजनों से नहीं देखेगा। वह एक रहस्यदर्शी होगा, क्योंकि उसे परमात्मा की उपस्थिति महसूस होगी। वह एक कवि होगा क्योंकि वह परमात्मा की उपस्थिति का महोत्सव मनाएगा। और वह वैज्ञानिक होगा क्योंकि इस उपस्थिति की जांच वह वैज्ञानिक कार्यप्रणाली से करेगा।

जब मनुष्य एक साथ यह तीनों है तो वह पूर्ण है। पुण्यात्मा की मेरी यही धारणा है। पुराना व्यक्ति दमनकारी था, आक्रामक था। पुराने व्यक्ति का आक्रामक होना स्वाभाविक था क्योंकि दमन हमेशा आक्रमण लाता है। अभिनव मनुष्य सहज होगा, सृजनात्मक होगा। पुराना व्यक्ति सिद्धांतों में जीया। नया मनुष्य सिद्धांतों में नहीं जीएगा, नैतिकताओं में नहीं जीएगा, वह सचेतनता से जीएगा। अभिनव मनुष्य बोधपूर्वक जीएगा। नया मनुष्य उत्तरदायी होगा--उत्तरदायी स्वयं को और अस्तित्व को। अभिनव मनुष्य पुराने अर्थों में नैतिक नहीं होगा, वह नीतिनिरपेक्ष होगा। नया मनुष्य अपने साथ एक नया जगत लेकर आएगा। अभी नया मनुष्य एक अल्पसंख्यक रूपांतरित वर्ग ही है। लेकिन वह नयी सभ्यता का संवाहक है, बीज है। उसे सहयोग दो। छत पर चढ़कर उसके आगमन की घोषणा करो ः यही मेरा संदेश है तुम्हें।

नया मनुष्य मुक्त है और ईमानदार है। उसका सत्य दर्पण जैसा है, प्रामाणिक है, स्वयं को प्रकट करने वाला है। वह पाखंडी नहीं होगा। वह उद्देश्यों के लिए नहीं जीएगा ः वह जीएगा अभी, यहीं। वह केवल एक ही समय से परिचित होगा, अभी, और एक ही स्थान, यहां। और उस उपस्थिति में जान पाएगा कि परमात्मा क्या है। आनंदित होओ। अभिनव मानव आ रहा है, पुराना विदा हो रहा है। पुराना पहले ही सलीब पर लटका है, और नये का क्षितिज पर पदार्पण हो चुका है। आनंदित होओ! मैं बार-बार कहता हूं ः आनंदित होओ

उद्धरण : फ़िलॉसफिया पैरेनिस

मंत्र: मन का खेल

ओशो, अष्टावघ महागीता, प्रवचन 31

मंत्र तो मन का ही खेल है। मंत्र शब्द का भी यही अर्थ है: मन का जाल, मन का फैलाव। मंत्र से मुक्त होना है, क्योंकि मन से मुक्त होना है। मन न रहेगा तो मंत्र को सम्हालोगे कहां? और अगर मंत्र को सम्हालना है तो मन को बचाये रखना होगा। निश्चय ही मैंने तुम्हें कोई मंत्र नहीं दिया। नहीं चाहता कि तुम्हारा मन बचे। तुमसे मंत्र छीन रहा हूं। तुम्हारे पास वैसे ही मंत्र बहुत हैं। तुम्हारे पास मंत्रों का तो बड़ा संग्रह है। वही तो तुम्हारा सारा अतीत है। बहुत तुमने सीखा। बहुत तुमने ज्ञान अर्जित किया। कोई हिंदू है, कोई मुसलमान है, कोई जैन है, कोई ईसाई है। किसी का मंत्र कुरान में है, किसी का मंत्र वेद में है। कोई ऐसा मानता, कोई वैसा मानता। मेरी सारी चेष्टा इतनी ही है कि तुम्हारी सारी मान्यताओं से तुम्हारी मुक्ति हो जाए। तुम न हिंदू रहो, न मुसलमान, न ईसाई। न वेद पर तुम्हारी पकड़ रहे, न कुरान पर। तुम्हारे हाथ खाली हो जायें। तुम्हारे खाली हाथ में ही परमात्मा बरसेगा। रिक्त, शून्य चित्त में ही आगमन होता परम का; द्वार खुलते हैं। तुम मंदिर हो। तुम खाली भर हो जाओ तो प्रभु आ जाए। उसे जगह दो। थोड़ा स्थान बनाओ।

अभी तुम्हारा घर बहुत भरा है--कूड़े-कर्कट से, अंगड़-खंगड़ से। तुम भरते ही चले जाते हो। परमात्मा आना भी चाहे तो तुम्हारे भीतर अवकाश कहां? किरण उतरनी भी चाहे तो जगह कहां? तुम भरे हो। भरा होना ही तुम्हारा दुख है। खाली हो जाओ! यही महामंत्र है। इसलिए मैंने तुम्हें कोई मंत्र नहीं दिया, क्योंकि मैं तुम्हें किसी मंत्र से भरना नहीं चाहता। मन से ही मुक्त होना है। लेकिन अगर मंत्र शब्द से तुम्हें बहुत प्रेम हो और बिना मंत्र के तुम्हें अड़चन होती हो, तो इसे ही तुम बता दिया करो कि मन से खाली हो जाने का सूत्र दिया है; साक्षी होने का सूत्र दिया है। कुछ रटने से थोड़े ही होगा कि तुम राम-राम, राम-राम दोहराते रहो तो कुछ हो जाएगा। कितने तो हैं दोहराने वाले! सदियों से दोहरा रहे हैं। उनके दोहराने से कुछ भी नहीं हुआ। दोहराओगे कहां से? दोहराना तो मन के ही यंत्र में घटता है। चाहे जोर से दोहराओ, चाहे धीरे दोहराओ--दोहराता तो मन है। हर दोहराने में मन ही मजबूत होता है। क्योंकि जिसका तुम प्रयोग करते हो वही शक्तिवान हो जाता है।

मैं तुम्हें कह रहा हूं कि साक्षी बनो। ये मन की जो प्रक्रियाएं हैं, ये जो मन की तरंगें हैं, तुम इनके द्रष्टा बनो। तुम इन्हें बस देखो। तुम इसमें से कुछ भी चुनो मत। कोई फिल्मी गीत गुनगुना रहा है, तो तुम कहते: अधार्मिक; और कोई भजन गा रहा है तो तुम कहते हो: धार्मिक! दोनों मन में हैं--दोनों अधार्मिक। मन में होना अधर्म में होना है। उस तीसरी बात को सोचो जरा। खड़े हो, मन चाहे फिल्मी गीत गुनगुनाए और चाहे राम-कथा--तुम द्रष्टा हो। तुम सुनते हो, देखते हो, तुम तादात्म्य नहीं बनाते। तुम मन के साथ जुड़ नहीं जाते। तुम्हारी दूरी, तुम्हारी असंगता कायम रहती है। तुम देखते हो मन को ऐसे ही जैसे कोई राह के किनारे खड़े हुए, चलते हुए लोगों को देखे: साइकिलें, गाड़ियां, हाथी-घोड़े, कारें, ट्रक, बसें...। तुम राह के किनारे खड़े देख रहे हो। तुम द्रष्टा हो। अष्टावक्र का भी सारा सार एक शब्द में है--साक्षी। मंत्र तो बोलते ही तुम कर्ता हो जाओगे। बड़ा सूक्ष्म कर्तृत्व है, लेकिन है तो! मंत्र पढ़ोगे, प्रार्थना करोगे, पूजा करोगे--कर्ता हो जाओगे। बात थोड़ी बारीक है। थोड़ा प्रयोग करोगे तो ही स्वाद आना शुरू होगा।

जो चल रहा है, जो हो रहा है, वही काफी है; अब और मंत्र जोड़ने से कुछ अर्थ नहीं है। इसी में जागो। इसको ही देखने वाले हो जाओ। इससे संबंध तोड़ लो। थोड़ी दूरी, थोड़ा अलगाव, थोड़ा फासला पैदा कर लो। इस फासले में ही तुम देखोगे मन मरने लगा। जितना बड़ा फासला उतना ही मन का जीना मुश्किल हो जाता है। जब तुम मन का प्रयोग नहीं करते तो मन को ऊर्जा नहीं मिलती। जब तुम मन का सहयोग नहीं करते तब तुम्हारी शक्ति मन में नहीं डाली जाती। मन धीरे-धीरे सिकुड़ने लगता है। यह तुम्हारी शक्ति से मन फूला है, फला है। तुम्हीं इसे पीछे से सहारा दिये हो। एक हाथ से सहारा देते हो, दूसरे हाथ से कहते हो: कैसे छुटकारा हो इस दुख से? इस नर्क से? तुम सहारा देना बंद कर दो, इतना ही साक्षी का अर्थ है। मन को चलने दो अपने से, कितनी देर चलता है? जैसे कोई साइकिल चलाता है, तो पैडल मारता तो साइकिल चलती है। साइकिल थोड़े ही चलती है; वह जो साइकिल पर बैठा है, वही चलता है। साइकिल को सहारा देता जाता है, साइकिल भागी चली जाती है। तुम पैडल मारना बंद कर दो, फिर देखें साइकिल कितनी देर चलती है! थोड़ी-बहुत चल जाए, दस-पचास कदम, पुरानी दी गयी ऊर्जा के आधार पर; लेकिन ज्यादा देर न चल पाएगी, रुक जाएगी। ऐसा ही मन है। मंत्र का तो अर्थ हुआ पैडल मारे ही जाओगे। पहले भजन या फिल्म का गीत गुनगुना रहे थे, अब तुमको किसी ने मंत्र पकड़ा दिया--दोहराओ ओम, राम--उसे दोहराने लगे, दोहराना जारी रहा। पैडल तुम मारते ही चले जाते हो।

प्रक्रिया में जुड़ जाना मन की, मन को बल देना है।

तो अगर तुम्हें मंत्र शब्द बहुत प्रिय हो तो यही तुम्हारा मंत्र है, महामंत्र, कि मन से पार हो कर साक्षी बन जाना है।

धुँधली हुई दिशाएँ

धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा,
कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसा
कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है,
मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है?
दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे,
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे
प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ
चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ

बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है,
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है?
मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश रहा है या सौभाग्य का सितारा?
आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा,
भगवान, इस तरी को भरमा दे अँधेरा
तमवेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ
ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ

आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है,
बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है,
अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ डेर हो रहा है,
है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है!
निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है,
निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है
पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ
जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ

मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है,
अरमानआरज़ू की लाशें निकल रही हैं
भीगीखुशी पलों में रातें गुज़ारते हैं,
सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं,
इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे,
पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे
उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ
विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ

आँसूभरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे,
मेरे शमशान में श्रंगी जरा बजा दे
फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे,
हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे
आमर्ष को जगाने वाली शिखा नयी दे,
अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे
विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ
बेचैन ज़िन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ

ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे,
जो राह हो हमारी उसपर दिया जला दे
गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे,
इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे
हम दे चुके लहु हैं, तू देवता विभा दे,
अपने अनलविशिख से आकाश जगमगा दे
प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ
तेरी दया विपद् में भगवान माँगता हूँ