नया सूर्य..

गैस के सिलेंडर से चूल्हे की अनबन है। कोहराई दूब सी चिंतन की दुलहन है॥ अलगावी आतंकी मौसम सा ढोया है मतदाता सूची सा दर्द हर संजोया है॥ खेतों पर कर्ज लिये फसलें कुछ बोई थीं। रेत हुई आशायें आंखों ने धोई थीं॥ सूखे में सारा घर काजल सा सोया है प्राण के विसर्जन ने संयम धन खोया है॥ जन्म से लोकतंत्र आश्वासन खाये हैं। तवे और रोटी से सपने टकराये हैं॥ अपने संकल्प से प्रजातंत्र रोया है रक्त से अहिंसा की आखर हर धोया है॥ -[डा. जीवन शुक्ल]

गया साल

छोड कर फिर कई सवाल, गया साल! पंख नोची हुई तितलियां हैं रेत में हांफती मछलियां हैं धूप लेटी हुयी निढाल गया साल! हर तरफ दहशतों भरा मौसम जागती रातें हैं नींदें कम, स्वप्न रखें कहां सम्हाल गया साल! हर तरफ धुंध है, कुहासा है गांव-घर में बसी हताशा है, खून के सर्द हैं उबाल गया साल! -[डा. हरीश निगम]

नव वर्ष


विगत वर्ष की असीम सुभ कामनाओं, आशाओं को लेकर गत वर्ष के प्रथम प्रभात बेला मैं रवि किरणे सुभकामना, मंगलता, उत्तमता का संदेश लायें हम सब के जिन्दगी मैं..