सारे कमरे बांट लिए ..



सारे कमरे बांट लिए हैं बेटों ने बटवारे में।
अब्बा-अम्मा का बिस्तर अब लगता है ओसारे में॥

बिजली के बिल की तानें तो बन कर कहर टूटती हैं।
रातें उनकी जगते-जगते कटती हैं अंधियारे में॥

बेटों के सर बीवी-बच्चों की भी जिम्मेदारी है।
किसको फुर्सत सोचे अम्मा-अब्बा जी के बारे में॥

जाने कितने राज छुपे हैं दिल के कोनों-खदरों में।
जाने कितने दर्द बह गए हैं आंसू के धारे में॥

शाहिद अब तो घर के ऊपर उनका ही अधिकार नहीं।
जिनका खून-पसीना शामिल है इस घर के गारे में॥


शाहिद वारसी

2 comments:

Anonymous

March 23, 2008 at 10:22 AM

apki anubhuti ka jawab nahi hai ye to aaj ghar ghar ki kahani hai jise apne batayi kavita ki jubani hai. yours TRIYOGI MISHRA VINDHYACHAL, MIRZAPUR UP

Brijesh

March 27, 2008 at 1:24 PM

हाँ त्रियोगी जी सही कहा आपने .. आजकल हर घर की यही कहानी बनती जा रही है.
हम अपने संस्कार को भूलते जा रहे हैं | जहाँ माँ-बाप को भगवान् का दर्जा दिया जाता रहा हो, वहाँ पर आज कल यह आम बात बनती जा रही है | जिस समय माँ-बाप को सहारे की जरूरत होती है उस समय हम उन्हें भूल जाते हैं और छोड देतें हैं उन्हें..
लकिन हम यह भूल जाते हैं की यही घटना एक दिन हमारे साथ भी होनी है |

काश हर कोई इस बात को समझ पाये तो यह नौबत ही न आए..