फर्क

पति के जन्मदिन पर पत्नी उन्हें तोहफा देती थी। वहीं पति भी पत्नी के जन्मदिन पर उसे तोहफा दिया करते थे। पत्नी गृहिणी थी। जाहिर था कि वह पति से ही पैसे लेकर अपनी पसंद के तोहफे उन्हें देती थी। तोहफे देते वक्त उसके मुंह से अनायास निकलता, लीजिए, मेरी तरफ से तोहफा!

पति सोचते, पत्नी मेरे ही पैसे से मुझे मेरे जन्मदिन पर तोहफे देती है तो उसे अपना क्यों बता देती है। एक बार पति के जन्मदिन पर पत्नी ने एक शर्ट पति को प्रेजेंट की और कहा, मेरी ओर से इसे कबूल कीजिए।

पति ने कहा, मैं तुम्हें तोहफा दूं या तुम मुझे तोहफा दो, बात तो एक ही है क्योंकि दोनों तोहफों में पैसा मेरा ही लगता है। फिर दोनों में फर्क क्या है?

पत्नी को बहुत बुरा लगा। वह पति के मन में छुपे भाव को ताड गई। उसने संयम दिखाते हुए कहा, तुम्हारे और मेरे तोहफे में स्वामित्व के लिहाज से कोई फर्क नहीं है।

मगर इस लिहाज से फर्क जरूर है कि जहां तुम्हारे तोहफे में पुरुषजन्य दर्प झलकता है वहीं मेरे तोहफे में प्रेम और विनम्रता होती है। ऐसा बेबाक जवाब सुनकर पति महोदय सकपका गए।

[ज्ञानदेव मुकेश]

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