गया साल

छोड कर फिर कई सवाल, गया साल! पंख नोची हुई तितलियां हैं रेत में हांफती मछलियां हैं धूप लेटी हुयी निढाल गया साल! हर तरफ दहशतों भरा मौसम जागती रातें हैं नींदें कम, स्वप्न रखें कहां सम्हाल गया साल! हर तरफ धुंध है, कुहासा है गांव-घर में बसी हताशा है, खून के सर्द हैं उबाल गया साल! -[डा. हरीश निगम]

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