नया सूर्य..

गैस के सिलेंडर से चूल्हे की अनबन है। कोहराई दूब सी चिंतन की दुलहन है॥ अलगावी आतंकी मौसम सा ढोया है मतदाता सूची सा दर्द हर संजोया है॥ खेतों पर कर्ज लिये फसलें कुछ बोई थीं। रेत हुई आशायें आंखों ने धोई थीं॥ सूखे में सारा घर काजल सा सोया है प्राण के विसर्जन ने संयम धन खोया है॥ जन्म से लोकतंत्र आश्वासन खाये हैं। तवे और रोटी से सपने टकराये हैं॥ अपने संकल्प से प्रजातंत्र रोया है रक्त से अहिंसा की आखर हर धोया है॥ -[डा. जीवन शुक्ल]

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