लड़ गई, झूठे बहाने गढ़ गई ये फाइलें।
फाइलों को ढूंढने में बढ़ गई ये फाइलें॥
चप्पलें टूटीं, घिसीं, फिर आदमी भी पिस गया,
पीठ पर बैताल जैसी चढ़ गई ये फाइलें।
जिंदगी भर आफिसों के चक्रव्यूहों में फंसा,
नियति को अभिमन्यु जैसा कर गई ये फाइलें।
लोग ये देखा किए कि फाइलें आगे बढ़ीं,
वृत्त में घूमीं, वहीं फिर अड़ गई ये फाइलें।
कागजों की कीमतों पर बहस के ठेके लिए,
दस्तखत की बोलियों पर लड़ गई ये फाइलें।
लिखते-लिखते गुमशुदा होती गई दरख्वास्तें,
पढ़ते-पढ़ते और ज्यादा कढ़ गई ये फाइलें।
लोग बरसों निर्णयों की आस में बैठे रहे,
उत्तरों-प्रत्युत्तरों पर अड़ गई ये फाइलें।
बाबुओं की जान हैं और अफसरों की शान हैं,
फिर न जाने क्यूं हमें ही खल गई ये फाइलें।
रोली मिश्रा
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