हिंदी तेरे दर्द की, किसे यहाँ परवाह,
एक अंग्रेजी साल, एक हिंदी सप्ताह
धड़कन मैं इंग्लेंड हैं, मुँह पर हिंदुस्तान,
ऐसे मैं हो किस तरह, हिंदी का उत्थान
निज भाषा, निज राष्ट , निज संसकृत से परहेज,
गोरों कि आगे हुए, हम काले अंग्रेज
स्वाभिमान को बेचकर, जारी जिनके जश्न,
हैं फिजूल उनके लिए, निज भाषा का प्रस्न
अंग्रेजी के मोह मैं खोई निज पहचान,
घर के रहे, न घाट के, हम धोबी के श्वान
दिल्ली तेरे न्याय पर, कैसे हो विश्वास,
अंग्रेजी को राजसुख, हिंदी को बनवास
भाषा-संसकृत से रहा, यदि यूँ ही बिद्वेष,
आने वाली पीढियॉ, ढूँडेगी अवशेष
हिंदी का खाकर गुने, जो अंग्रेजी गीत,
हे प्रभु ! सौ दुश्मन मिले, मिले न ऐसा मीत
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