एक दिन मिल गयी वो मुझे
गली के एक मोड़ पर
बिखरे उलझे केश, चेहरे पर झुर्रिया.
झुकी कमर और हाथ में लाठी !!!
पूंछ ही लिया मैंने……….. कोन हो तुम
हिचकती, हक्लाती वो बोली
बेटा नही पहचानता मुझे……..
में हिन्दी हू तुम्हारी माँ,
मैंने सबको अपने में समाया,
पर… तुम्ही ने नही अपनाया मुझे
में जहा कल थी , आज वो है………….
शर्म से झुक गयी मेरी आँखे,
पता नही कहा चली गयी मेरी आवाज,
और जब नज़रे उठी तो सामने कोई नही था,
था तो केवल शून्य, केवल शून्य…………॥!!!!!
2 comments:
October 31, 2007 at 8:16 PM
हिंदी हमारे अंदर है। तसल्ली रखिए, जब तक हम और आप जैसे करोडों लोग हैं, तब तक हिंदी को कोई नहीं मिटा सकता।
November 24, 2007 at 11:22 AM
धन्यबाद अनिल जी,
ठीक कहा आपने, नयी पीढ़ी जिस तरह हिन्दी के स्वरूप को भूल सी रही है, हमें उसके लिए कुछ नया करना चाहिऐ | आने वाले समय मैं शायद हिन्दी का स्वरूप कुछ अलग हो जाएगा , तब हम लोग अपने बच्चो के नाम तो हिन्दी मैं रखेंगे लकिन वो पछिमी sabyata को अपना चुके होंगे।
nischit रुप से haimain is bichar करना होगा।
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