तुमसे कहीं आज लिपट जाएँ तो माफ़ कर देना,
हद से गर आगे बढ़ जाएँ तो माफ़ कर देना.
शोखियाँ आंखों कि बेताब कर रही हैं हम को
आज इन मी कहीं डूब जाएँ तो माफ़ कर देना.
भीगे होठों के पैमाने न दिखाओ हम को,
इन्हें पीने को लैब लिपट जाएँ तो माफ़ कर देना.
दिल कि बातें लैब तक ला कर रोक लेते हैं हम
ख़त हमारे किताबों में कभी पो तो माफ़ कर देना.
हर सांस हमारी तुम्हारे हुस्न कि कर्ज़दार हो चुकी,
दिल-ए-नादान इजहार -ए -मोहब्बत कर जाये तो माफ़ कर देना.
उल्फत के अफसाने गूंजते हैं कायनात तक,
इश्क हमारा तुम्हे बदनाम कर जाये तो माफ़ कर देना.
जान, हद से आगे बढ़ जाएँ तो माफ़ कर देना,
तुमसे कहीं आज लिपट जाएँ तो माफ़ कर देना.
1 comments:
November 24, 2007 at 11:41 AM
बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
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