जब कभी मिलते है उनसे

जब कभी मिलते है उनसे, तो लगता है
हम अपनी कही कोई हुई ख़ुशी से मिलते है

सर को रख लेते है उनके दर पर " ख्वाइश "
हम उनसे इतनी दीवानगी से मिलते है

जब कभी जुदा होते है हम उनसे
कोई होश न ही कोई सुकून मिलता है
समझलो जैसे हम अपनी आवारगी से मिलते है

हमें नही कोई शौक महफिलो में रहने का
हम तो उनके साथ मिले पल, भीड़ से दूर,
जहाँ सिर्फ वह और हम रहे,
यूह समझलो बड़ी सादगी से मिलते है

वह जब साथ होते है अपने,
रौनके ढूँढ़ते है चेहरों पर,
जिस किसी आदमी से मिलते है

इश्क कि खुमारी, इश्क करने वाले समझे
हमें तो यही लगता है, रात कि तन्हाई में
आसमान के तारे भी अपने ज़मीन से मिलते है

गुमसुम सा हो जाता हूँ तनहा मैं
जो वह मिलते है तो लगता है
हम अपनी खोई हुई हस्ती से मिलते है

जब भी मिलते है उनसे तो अपनी,
हर सांस ,हर लफ्ज़, हर ख्वाइश,
हर कदम, हर धड़कन, हर आरजू, हर दुआ
लगता है हमें, कुबूल हो गयी हो जैसे,
उन्हें मिलके होता है यह एहसास जैसे
हम अपनी ज़िंदगी से मिलते है

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