भूत कि परिधि को पार कर,
बर्तमान का रचियता
तथा भविष्य के अनन्त अज्ञात
की ओर निरंतर बढ़ता वक़्त जब कभी थकता है
तो पल भर को कहीँ रुकता है
और पीछे पलटकर देखता है
कि कहीँ उसके स्मृति के किसी कोने मैं
उसे चन्द मुस्कराते चेहरे दिख जायं जो
उसमें नवीन उर्जा का संचार कर उसे आगे बढने कि शक्ति प्रदान कर दें ।
नमन - ओशो
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