आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
आज से दो प्रेम योगी, अब वियोगी ही रहेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बांधूँ,
किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये, यह योग साधूँ !
जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
आयेगा मधुमास फिर भी, आयेगी श्यामल घटा घिर,
आँख भर कर देख लो अब, मैं न आऊँगा कभी फिर !
प्राण तन से बिछुड़ कर कैसे रहेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
अब न रोना, व्यर्थ होगा, हर घड़ी आँसू बहाना,
आज से अपने वियोगी, हृदय को हँसना सिखाना,
अब न हँसने के लिये, हम तुम मिलेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
आज से हम तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे,
दूर होंगे पर सदा को, ज्यों नदी के दो किनारे,
सिन्धुतट पर भी न दो जो मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
तट नदी के, भग्न उर के, दो विभागों के सदृश हैं,
चीर जिनको, विश्व की गति बह रही है, वे विवश हैं !
आज अथइति पर न पथ में, मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
यदि मुझे उस पार का भी मिलन का विश्वास होता,
सच कहूँगा, न मैं असहाय या निरुपाय होता,
किन्तु क्या अब स्वप्न में भी मिल सकेंगे ?
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
आज तक हुआ सच स्वप्न, जिसने स्वप्न देखा ?
कल्पना के मृदुल कर से मिटी किसकी भाग्यरेखा ?
अब कहाँ सम्भव कि हम फिर मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
आह! अन्तिम रात वह, बैठी रहीं तुम पास मेरे,
शीश कांधे पर धरे, घन कुन्तलों से गात घेरे,
क्षीण स्वर में कहा था, "अब कब मिलेंगे ?"
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
"कब मिलेंगे", पूछ्ता मैं, विश्व से जब विरह कातर,
"कब मिलेंगे", गूँजते प्रतिध्वनिनिनादित व्योम सागर,
"कब मिलेंगे", प्रश्न उत्तर "कब मिलेंगे" !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
- पं. नरेन्द्र शर्मा
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