आरजू

आज के दौर मैं ए दोस्त ये मंजर क्यों है,
जख्म हर सर पै है, हर हाथ मैं पत्थर क्यों हैं।
जब हक़ीकत है कि हर जर्रे मैं तू रहता है फिर,
जमीं पर कहीँ मस्जिद कही मंदिर क्यों है

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